Death liberated us, life oppressed us बिलोली, गोविंद मुंडकर| मृत्यु ने हमें मुक्त किया, जीवन ने हमें प्रताड़ित किया था। अंतिमसंस्कार की ओर जाते समय मुझे बस इतना ही पता चला। कवि सुरेश भट्ट की ये हृदय विदारक पंक्तियां अब बिलोली के सामाजिक हालात पर टिप्पणी बन रही हैं। लिंगायत समुदाय के कब्रिस्तान से जुड़े लंबित मुद्दे पर प्रशासन की अनदेखी और कुंडलवाड़ी में कब्रिस्तान की खराब स्थिति से लोगों में गुस्सा है।

बिलोली में लिंगायत समुदाय का कब्रिस्तान कई महीनों से प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार है। संबंधित बोर्ड के अधिकारियों द्वारा पंचनामा और रिपोर्ट सौंपे जाने के बावजूद आगे की कार्रवाई में देरी हो रही है। रामराव पाटिल के निवास पर हुई बैठक के बाद सैकड़ों नागरिकों ने तहसीलदार को ज्ञापन सौंपकर तत्काल कार्रवाई की मांग की है। हालांकि प्रशासन ने पाटिल, देशमुख, पाटने, मुंडकर, इलेगावे और बोंगाले परिवारों के नागरिकों द्वारा हस्ताक्षरित इस बयान पर चुप्पी साधे रखी है।

कुंडलवाड़ी स्थित कब्रिस्तान में पेड़ों और झाड़ियों के अतिक्रमण के कारण अंतिम संस्कार के लिए आने वाले नागरिकों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। इस संबंध में गंगामाता शिक्षण प्रसारक मंडल ने समय-समय पर प्रशासन को ज्ञापन सौंपे, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। अंत में गंगामाता शिक्षण प्रसारक मंडल ने पहल की और कब्रिस्तान क्षेत्र में ही सफाई अभियान चलाया। इस दौरान “प्रशासन चुप-हम आगे बढ़ें!” के नारे के साथ स्थानीय सहभागिता से पेड़ों और झाड़ियों को हटाने का काम सफलतापूर्वक किया गया।
इसमें संगठन के सचिव श्री बी.पी. नरोद ने महत्वपूर्ण और प्रेरक भूमिका निभाई। उनके नेतृत्व और सामाजिक जागरूकता का हर जगह स्वागत किया जा रहा है। वर्तमान स्थिति में “क्या प्रशासन की संवेदना भी कब्रिस्तान में पड़ी लाशों की तरह मर चुकी है?” यह एक परेशान करने वाला सवाल नागरिकों द्वारा पूछा जा रहा है। जनता यह भावना व्यक्त कर रही है कि कब्रिस्तानों का उचित प्रबंधन न केवल सामाजिक बल्कि मृतकों की गरिमा और उनके परिवारों की सुविधा के लिए नैतिक जिम्मेदारी भी है।