कंधार (सचिन मोरे) महाराष्ट्र में ससुर द्वारा बहू को प्रताड़ित करने की कई घटनाएँ आज भी देखने को मिलती हैं। फिल्मों में भी हम सास को ‘खलनायक’ के रूप में देखते हैं। सास-बहू के बीच झगड़े की परंपरा सदियों पुरानी है। कई बार यह भी सुनने में आया है कि बहस मारपीट में बदल गई है।

इन सभी कड़वी यादों को मिटाकर समाज के लिए एक आदर्श स्थापित करने का बीड़ा वरिष्ठ राकांपा नेता और पूर्व जिला परिषद सदस्य रामचंद्र येईलवाड और उनके परिवार ने उठाया। ज्येष्ठ गौरी पूजन के दिन लकड़ी की लक्ष्मी त्याग दी गई और उनकी तीनों बहुओं की ज्येष्ठ और कनिष्ठ गौरी के रूप में पूजा की गई। यह पहल लगातार पाँचवें वर्ष भी उन्होने जारी रखी है।


हिंदू संस्कृति में गौरी पूजा का बहुत महत्व है। कई जगहों पर लकड़ी, लोहे और घड़े की गौरी स्थापित की जाती हैं और इस पर काफी पैसा खर्च होता है। हालाँकि, येईलवाड परिवार ने इस परंपरा को तोड़ते हुए चलती-फिरती लक्ष्मी यानी बहू की पूजा की। रामचंद्र येईलवाड और कमलाबाई येईलवाड ने तीनों बहुओं, वर्षा येईलवाड, प्रतिभा येईलवाड और मनीषा येईलवाड, की पूजा धूमधाम से की।


इस पहल के माध्यम से संदेश दिया गया, “बेटियाँ और बहुएँ घर की असली लक्ष्मी होती हैं। वे ही वंश को बढ़ाती हैं और पीढ़ियों का निर्माण करती हैं। महिलाओं की पूजा और उन्हें सम्मान देकर ही लक्ष्मी का वास्तविक आगमन हो सकता है।”

समाज में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अत्याचारों को रोकने के लिए हर परिवार को महिलाओं का सम्मान करना होगा। यह भी कहा गया कि अगर महिलाओं को समान अवसर, शिक्षा और शक्ति दी जाए, तो किसी लकड़ी की लक्ष्मी की पूजा करने की आवश्यकता नहीं है। इस अवसर पर सुखदेव येईलवाड, पद्मिनबाई येईलवाड, प्रोफेसर गंगाधर येईलवाड, संगीताबाई येईलवाड, विनायक येईलवाड, शिवकांत येईलवाड, सुदर्शन येईलवाड, शशिकांत येईलवाड, डॉ. भास्कर येईलवाड, उपसरपंच प्रह्लाद घुमे, सुरेश येवातिकर, नागेश येईलवाड, लक्ष्मण मोरे, शेख रहमत और अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे।